अजीब आदमी हो जी!
फजीहत
फजीहत कहते हो
फजीहत फाड़कर
मैदान में
नहीं उतरते हो
मायूस बैठे
मातम मनाते हो।
कुछ तो करो जी,
खाल की ही
खजड़ी बजाओ,
उछलो
कूदो
नाचो
गाओ
माहौल तो
जिंदगी जीने का
बनाओ
हँसो
और
हँसाओ।
रचनाकाल: ०६-०४-१९९१
अजीब आदमी हो जी!
फजीहत
फजीहत कहते हो
फजीहत फाड़कर
मैदान में
नहीं उतरते हो
मायूस बैठे
मातम मनाते हो।
कुछ तो करो जी,
खाल की ही
खजड़ी बजाओ,
उछलो
कूदो
नाचो
गाओ
माहौल तो
जिंदगी जीने का
बनाओ
हँसो
और
हँसाओ।
रचनाकाल: ०६-०४-१९९१