उनसे कई बार मिला
बहुत-सी बातें कहीं
पर संकोच में
या बुद्धिमानी की ओट में
वे चुप रहे
महज़ कहा
हूँ, हाँ और एक नहीं
(रचनाकाल : 1957)
उनसे कई बार मिला
बहुत-सी बातें कहीं
पर संकोच में
या बुद्धिमानी की ओट में
वे चुप रहे
महज़ कहा
हूँ, हाँ और एक नहीं
(रचनाकाल : 1957)