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अज आदि अनादि अनंत प्रभो / अनुराधा पाण्डेय

अज आदि अनादि अनंत प्रभो, करुणा पति हे! करुणा करिए।
बहु दोष विराज रहैं चित में, द्रुत आप इन्हें शुचि दे हरिए।
तम ताप विनाश सबै करके, छल छिद्र दया करके भरिए।
भव डोर अनाथ अकिंचन कै, कर में निज आप प्रभो! धरिए।