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अड़वै री हांडी / ओम पुरोहित कागद

अड़वै री हांडी
होई बांडी
घर बणी
चिड़कल्यां रो।

खेत धणी रा
पग सुण
चिड़कल्यां भरी उडारी
अड़वो फंफेड़ीज्यो
सूत्यो गंडक उठ्यो
अड़वै रै दीवी
पांच-सात फेरी
अचाणक उठाई
आपरी एक टांग
पछै बा ई बात
जकी करै
गंडका अकसर
दिन-रात।