अतीत की यादों के
टूटे काँच को
मैं--
दूर/बहुत दूर
फेंक चुकी थी, पर
अब भी,
जब मैं नए खूबसूरत
ख्यालों/ख्वाबों को
बुनने लगती हूँ, तो
पुरानी/बिखरी यादों की
कोई किरच
हथेलियों में चुभ जाती है
और, रिसते खून से
रंग उठता है
मेरा वर्तमान...!
अतीत की यादों के
टूटे काँच को
मैं--
दूर/बहुत दूर
फेंक चुकी थी, पर
अब भी,
जब मैं नए खूबसूरत
ख्यालों/ख्वाबों को
बुनने लगती हूँ, तो
पुरानी/बिखरी यादों की
कोई किरच
हथेलियों में चुभ जाती है
और, रिसते खून से
रंग उठता है
मेरा वर्तमान...!