Last modified on 25 मार्च 2012, at 12:05

अतीत के छींटे / सुदर्शन प्रियदर्शिनी


इस सन्नाटे भरी
रात में
न जाने
कहाँ से
छटाक से कोई
पत्थर मेरी
खिड़की पर
फैंकता है
और किरच -किरच
हुआ अतीत
मेरे आंगन मे
बिखर जाता है ...!