अतृप्ति
(प्रेम का मार्मिक चित्रण)
देख कर भी रात-दिन में स्वर्ग सुन्दर
हिमालय से प्राण अपने भर न पाया
नयन में वह चारू-शोभा धर न पाया
धन्य वे जन एक बार उसे निहारा
औ दृगों में बस गया सौदर्य सारा
आमरण वहती रहे आनंद -धारा
किन्तु मैं प्रतिदिन हिमालय देख कर भी
सदा भूला ही नयन मंें धर न पाया।
(अतृप्ति कविता का अंश)