इश्वर !
कि चाही अहाँ केँ?
फरिछा क' कहु
कि चाही अहाँ केँ?
एकगोट निरीह प्राणीक रक्त
पाखण्डक उद्योग चलबैत
हार मासुक देह केँ नोचि-नोचि खाइत
त्रिपुण्डधारीक आडम्बर युक्त पूजा पाठ
सोना चानीक चढ़ौना आ कि रं नाच ?
कि चाही?
जनेऊ धारीक चापलूसी
आदमी सँ आदमीक छुआछूत
भेदभाव, ऊँच-नीच, दुराचार
फूल-पात गंगाजल पूरित
ताम्र पात्र सँ स्नान
धूप-दीप नैबेध दूध-घी संग
चरणामृतक पान!
इश्वर!
कि चाही अहाँ केँ?
अच्छा ओ बुधनी !
जे डेन पकड़ने अबोध नेना केँ
दु क'र अन्न आ दूटा टकाक आस मे
स्वयं केँ परताड़ि सदिखन
घरे घर करैत छैक
लोकक चूल्हि चौका, भाड़ा-वर्तन
ओहि वर्तनक चमक मे देखैत अछि
नेनाक पढेबाक सपना
आ एहि सभ सँ पहिने नीत्तह निपैछ
मंदिरक कोना-कोना
मोने-मोन करैत मिनती-निहोरा
एहि भरोस मे किंवा एकदिन
मेट लेबैक अहाँ सभटा लिखलाहा
आँखि मे हेलैत सपना, भाप जँका उड़ियाइत
देखा रहल छैक अकास मे
भरोसाक सही अर्थ ठीक ठीक
भरोसे छैक एखन धरि शब्दकोश मे
से केकरा साहस छैक
जे बुझौतैक बुधनी केँ जा क'
कोन अनर्गल काज केलकैक बुधनी?
जे सुन्नहटि पाबि ओ चाननधारी
खींची देलकैक डाढ़ सँ नुआं
आ लूटि लेलकैक इज्जति
कतय गेल रही अहाँ?
मंदिरक कोन मे
अधर्म आ पापक भाला सँ बेधल
श्रद्धासिक्त अबलाक लेहुक टघार
माँटि केँ सोंखैत अहाँ नहि देखलियैक?
कतय गेल रही अहाँ?
किएक ने बचौलियैक बुधनीक इज्जति
किएक ने देलियैक सौसें गामक मुंह मे झिक
जखन बुधनी केँ कहल गेलैक बदचलन
किएक ने पकड़लियैक ओहि पाखण्डी
बड़का पगड़ी बला इज्जतिदार
त्रिपुण्डधारीक हाथ महक छौंकी
जे मंदिरक मोख नाँघला उतर
फोरि देलकैक सौसें देह दू दालि क' दोदरा
ओहि अबोध नेना केँ अछूत कहि
बुद्धक एतेक दिनक बाद
ई प्रश्न फेर सँ ठाढ़ करब
कि हयत उचित?
इश्वर!
कि अहाँ छी?
जँ अहाँ छी!
त' कतय गेल रही अहाँ?
साँच-साँच कहुँ
किएक ने ठाढ़ भेलियैक
अत्यचारक खेलाप
अथबल इश्वर।