जीवन कैसा हो- इस को तो जीने वाले
जागरूक हो पर जैसा चाहें वैसा
कर सकते हैं । मानव पीले गोरे काले
अपने घर का रूप रचें जी चाहे जैसा ।
लेकिन घर के भीतर जो स्वरूप मिलता है
मानव का वह घर के बाहर और और है,
घर के भीतर भी संबंध-भाव खिलता है
बहुरूपों में । दुनिया भर में यही तौर है ।
जहाँ अनिच्छा हो संगों से वहाँ संग का
कोई अर्थ नहीं । उचित तो है लगाव हो
जीवन का जीवन से, सब के अलग रंग का
आदर सभी करें सच्चा सहयोग-भाव हो ।
भिन्न-भिन्न रुचि हो तो भी निबाह होता है
यह सब में हो तो जीवन अथाह होता है ।
रचनाकाल : 21 जनवरी 1978