आदि पुरुष नाआदि शून धर। अविगति अभि-अंतर इच्छा धर॥
परम ज्योति पूरन प्रकाश-धर। प्रथम अंगुष्ट प्रमाा ठामधर॥
मूलमंत्र ऊँकार अधर धर। पाँच तत्त्व गुन तीन ताह धार॥
इन्द्रजाल गोपाल जाल धर। विष्णु महेश ब्रह्म मायाधर॥
माला तिलक जनेव जटाधर। गुप्त अछर बावन पावन धर॥
गुरु सिख विष अमृत विचारधर। सामवेद ऋगवेद भेद धर॥
यजुर अथर्वन वेद मानधर। निशि वासर संसार जानिधर॥
तारागन अनगिनत आन धर। श्वेत नील अरु पीत रंगधर॥
श्याम लाल प्रतिपाल संगधर। वर वैकुंठ कैलास वास धर॥
इन्रदादिक सुर असुर देह धर। धर्मराय यम चित्र गुप्त धर॥
इन्द्रादिक सुर असुर देह धर। धर्मराय यम चित्र गुप्त धर॥
महामेघ चंचल चंपलाधर। मच्छ कच्छ वाराह शंख धर॥
दशाँ दिशा, दिगपाल दशोधर। महि मंडल मानुष लीलाधर॥
पशु विहंग जलचर थलचर धर। कुमी कीट जिय जन्तु सकल धर॥
वृष्टि शीत ऊषम ऊष्मजधर। पिंड प्रान वुधि ज्ञान ध्यान धर॥
बावन वपु नरसिंह रूपधर। परशुराम वलिराम रामधर॥
लोकनाथ जग निःकलंक धर। पाप पुन्य सुख सरग नरक धर॥
मुक्ति भुक्ति जप योग युक्तिधर। आव गवन जिय जरा मरन धर॥
कर्म भर्म अतरन तारन धर। गुन प्रकृति मन वृत्ति कृतिधर॥
इन्द्रिय दसो चक्र षट छट धर। अनादिक स्वादू रस षट धर॥
रूप सुगंध नाद वानी धर। नवो खंड व्रह्मंड अंड धर॥
मेरु सुमेरु कुवेर सहित धर। पुरी समुद्र द्वीप द्वीप धर॥
गण्डक गंग यमुन सर-स्वाति धर। तीरथ व्रत वहु क्षेत्र धाम धर॥
अस्थावर वन तृन आदिक धर। दुख सुख संयम कुमति सुमरिधर॥
सन्तन संगीत हेत वपुषधर। यश अपयशधर दया धरमधर॥
कनक रतन मानिक मक्ताधर। सतयुग त्रेता द्वापर कलिधर॥
नारायण सनकादि कपिल धर। दत्तत्रय यज्ञावतार धर॥
वद्री धु्रव प्रहलाद पृथूधर। विद्यापति यदु गज मोचन धर॥
व्यासदेव हयग्रींव सींव धर। भगत हेत भगवंत पुरुष धर॥
सुनि गंधर्व ऋषी राक्षसधर। करामत ऋधि सिधि समूहधर॥
लोक अनेक आप ओदर धर। युग युग युग अनंत लीलाधर॥
धरनिदास के हृदय चरन धर। जय जय जय प्रभु आदि अंतधर॥