मेरे पास अपना बहुत कुछ था
मेरी मिट्टी
मेरी नदी
मेरा धर्म
पर आज लगता है
जहाँ मैं पैदा हुई
जिस मिट्टी में खेली
जिस नदी से प्यास बुझाई
उसे अपना कहने के लिए
लेनी होगी इजाज़त
सत्ता से
फैलाना पड़ेगा हाथ
धर्म और मज़हब के सामने
इसके बाद भी
क्या मेरा कुछ हो सकेगा अपना