कोई मकान अधूरा क्यों रह जाता है !!
सलीब की तरह टँगा है
यह सवाल मेरे मन में
अधूरे मकान को देख कर
मुझे पिता की याद आती है
उनकी अधूरी इच्छाएँ और कलाकृतियाँ
याद आती हैं
देख कर कोई अधूरा मकान
उम्र के आख़िरी पड़ाव में
एक स्त्री के आँचल में
एक बेबस आदमी का
बच्चे की तरह फफकना याद आता है
अतीत में आधी-आधी रात को जग कर
कुछ हिसाब-किताब करते
कुछ लिखते
एक ईमानदार आदमी का चेहरा सन्नाटे में
पीछा करता है
एक अकेले और थके हुए आदमी की पदचाप
सुनाई देती है सपने में
कोई मकान अधूरा क्यों रह जाता है !!