लिखी गई कविता
हो जाती है बेमानी अक्सरहाँ
कई बार लिखे जाने के चंद
क्षणों बाद ही
रह जाते हैं भाव अधूरे
समय के झोंके में हिलते-डुलते
साया-मात्र भर
अंदर बैठा गवाह
बगैर स्खलित हुए
कुछ-न-कुछ
रख नहीं पाता कदाचित
अपनी बात
एक बार भी ।