जब विलमते पत्र तुमने, फर्ज की खातिर लिखे 
तब नए दो गीत मैंने, रूप की खातिर लिखे
जब अनिद्रा रोग देकर, सो गए मुँह फेर तुम 
स्वप्न के चलचित्र मैंने नींद दी खातिर लिखे 
जब अधूरी तृप्ति दे तुम, दे गए दुगुनी तृषा  
युग नयन में लवण सागर, होठ की खातिर लिखे 
जब सुपरिचित उष्ण स्पर्शों से बने अनजान तुम 
कुछ पिराते छंद इस पल प्राण की खातिर लिखे