Last modified on 25 मई 2014, at 17:05

अनंग पुष्प / पुष्पिता

तुम
प्रेम का शब्द हो
विदेह प्रणय की
सुकोमल देह
अनंग पुष्प की
साकार सुगंध।
अनुभूति का अभिव्यक्त रूप
अजस्र उष्म अमृत-कुंड
जिसमें नहाती और तपती है देह
प्रणय की ज्वालामुखी आँच में
लावा के सुख को जानने के लिए।
अपनी ही सांसों की
हिमानी हवाओं में
बर्फ होती हुई
स्मृतियों के स्वप्न से
पिघलती है
अपनी ही तृषा-तृप्ति के लिए
पीती हूँ अपनी ही देह का पिघलाव
तुम्हारे सामने न होने पर
दर्द से जन्मे
आँसुओं को
दर्द से जिया है।
प्रतीक्षा की आग के ताप को
आँसू
चुप नदी की तरह पीती है
प्रतीक्षा के प्रवाह में
टूटी लकीरें तोड़ती हैं
संवेदनाओं का साहस।