Last modified on 26 नवम्बर 2009, at 20:42

अनमने दिन / अनिल जनविजय

दिन बीते
रीते-रीते
इन सूनी राहों पे

मिला न कोई राही
बना न कोई साथी
वन सूखे चाहों के

याद न कोई आता
न मन को कोई भाता
घेरे खाली हैं बाहों के

कलप रहा है तन
जैसे भू-अगन
दिन आए फिर कराहों के


(रचनाकाल : 2005)