आश्चर्य है मुझे
बुद्धिवादी कहलाने वाले
मेरे तमाम दोस्त
अँधे, बहरे या गूँगे हो गये हैं।
मैं समझ नहीं पायी
ऐसा क्यों और कैसे हुआ!
किस गुनाह के तहत
नोंच लिये गये उनके दिमाग
और विचारों को बेजुबान कर दिया गया
या फिर ऐसा तो नहीं
कि उनकी जुबान
उल्टी लटक गयी हो खुद ही
चमगादड़ की तरह उनके पेट में...
हो ऐसा भी सकता है
कि जिजीविषा की छटपटाहट में
उन्होंने अपनी सोच को
सोने के बिस्कुटों से
विनिमय कर लिया हो
ये सब कुछ हो सकता है
और ये सब नहीं भी हो सकता है!
मैं हैरान और परेशान हूँ
कि किस तरह
दोस्तों की आवाज़ में
असर पैदा हो!