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अनसोहाँत / अविरल-अविराम / नारायण झा

दृष्टिहीन जँ आँखि जचतै
कर्णहीन जँ कान जचतै
दिन अछैत अन्हार लगैए
कखन धरि ई बात पचतै!

दिशाहीन जँ दिशा देखेतै
कर्महीन जँ कर्म सिखेतै
देखलो बाट पहाड़ लगैए
कोना के एहेन बात छजतै!

बिनु पढ़ुआ जँ पाठ पढ़ेतै
फुसिक ढ़ाकी लेक्चर झाड़तै
पढ़लो पाठ बेकार लगैए
नेना कोनाके पाठ पढ़तै!

कठकोकाँड़ि जँ प्रेम पुनकेतै
घरघुसना अनुराग देखेतै
अनसोहांतक अम्बार लगैए
सत्य कतेक समाठ चुड़ेतै!

बेसुरा जँ संगीत सजेतै
नकभेमहा जँ गीत गओतै
अरदर आ कनफार लगैए
केना अकानल बाट धड़तै!

आन्हर- बहीर मालिक बनतै
नांगर लुल्ह मुख्तार कहेतै
नीको लोक गद्दार लगैए
कोना देशक पाग बचतै!