यह जो चमक रहा है दिन में
अपना ही घर है
छत के ऊपर कटी पतंगें
दौड़ रहे हैं बच्चे
सूखे कपड़ों को विलगाकर
खेल रहे हैं कंचे
यह जो बेच रहा है टिन में
गुड़ औ’ शक्कर है ।
एक-एक रोटी का टुकड़ा
एक-एक मग पानी
फिर भी रोती नहीं सविता
नानी की हैरानी
यह जो सोच रहा है मन में
असली फक्कड़ है ।
नंगे पाँव चले बतियाने
इस टोले, उस टोले
कीचड़ को ही बना आइना
उझक-उझक डोले
यह अनहद सुख जागा जिनमें
वह तो ईश्वर है ।