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अनायास तुम से मिलना / संगीता गुप्ता

अनायास
तुम से मिलना
और आत्मीयता की
सारी सीमाएं लांघ कर
यूं विभोर हो जाना मेरा

सेचती हूँ
क्या रिश्ते
ऐसे भी होते हैं
इतने पारदर्शी, इतने सरल

तुम्हारी आँखों की नमी में
मेरा अस्तित्व डूब गया है
मैं नहीं हूँ
कहीं भी नहीं
क्यों कि
मैं
तुम हो गयी हूँ