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अनावृत / प्रवीण काश्‍यप

हमर मन साँच
अहाँक देह पर ससरैत साँप
प्रेमक बोल सँ
तिक्त होइछ अहाँक मन
ऐठैत अछि जीह
बोल भरोस दैेत छी अपना कें
तें ठहरल छी।
मुदा अनावृष्टि सँ
फूल-फल विलीन
पात-पात हमर झरकल छी
दम घुटैया
बहैत अछि शीतल बसात
हम अनावृत
हार-हार काँपैया!
आ बेर-बेर अहाँ
हिमाल पानि सँ भिजबै छी
कखनहुँ समयक नाम पर
कखनहुँ लोकक नाम पर!