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अनिवासी भारतीयों का शहर / प्रमोद कुमार

गोरखपुर बहुत पीछे है लखनऊ से
लखनऊ दिल्ली से
दिल्ली वर्षों पीछे अमेरिका से,

ओह, यह शहर इतना पीछे है
और हमें बहुत आगे जाना है अमेरिका तक,
बड़ी बेचैनी है

एक यही बेचैनी चला रही है शहर को
इसे दूर करने में कोई कुछ भी करे
स्वीकार है इसे,

जल्द से जल्द कोई तकनीक लाओ
स्कूल से अस्पताल तक
घर से बाजार तक
सारे रास्ते खोलो
कि
किसी सीधे रास्ते का निवेश हो,
घट सके
अमेरिका पहुँचने का समय,

यह शहर उमस से अपने भीतर भरा है
अपनी पहचान के दागों को मिटाने
लोग खरोच रहे अपनी चमड़ी
पपड़ी-सी नोंच रहें स्मृतियाँ ,

चौबीसों घंटे सारे अंग व्यस्त हैं
यहाँ खुली आँखें वहाँ देख रहीं
पाँव उसके आकाश में चल रहे

उसके गठरों को खोलने में
इनके सारे हाथ बँधे हैं

यहाँ जो ठहाके हैं
वहाँ के ठहाके हैं
रुदन जो सुनाई दे रही
वहीं की है

इस शहर के अपने फटे कैलेण्डर में
जो दो चार उदास चिन्ह हैं
वे यहाँ के उत्सव हैं

मित्रो, रोज़ पसरता
यह शहर
उन लोगों का एक छोटा शहर है
जो इस देश में रहते हुए
अनिवासी भारतीय हैं ।