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अनुग्रह / उमा अर्पिता

तुम्हारी आवाज की
गर्माहट से
मेरे एकांत की
बर्फ पिघलने लगी है,
अब इससे
फूट पड़ेगा
खुशियों का कलकल करता
इंद्रधनुषी रंगों वाला झरना!
जिसमें नहाकर
मैं गुलमोहर-सी
गहराने लगूँगी
और--
तुम्हारे प्यार की गंध
अपने में संजोये
दूर...कहीं...
घाटी-घाटी, पर्वत-पर्वत
मस्ती में चूर
भटकती चली जाऊँगी...
तब ज़रा
ऐसे में
आकर थाम लेना!