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अनुत्तरित मौन / केदारनाथ अग्रवाल
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अनुत्तरित मौन
अब भी अनुत्तरित है
दिक और काल में खड़ा हिमालय
इसका प्रतीक है
(रचनाकाल :13.10.1965)