अनुत्तीर्ण / निधि अग्रवाल

जीवन में जिन घटनाओं ने
सबसे बड़ी ख़ुशियों के आगमन के
मंगलगीत गाए ,
दरअसल वही हमें
गहन विषाद में धकेलने का
सामर्थ्य रखती थीं।

जिन जीतों पर
हम हुए थे गौरवान्वित,
वही सम्बन्धों की
सबसे बड़ी हार थी!

जिन क्षणिक उजालों
को मान बैठे थे सूर्योदय,
उनकी चकाचौंध ने ही
दृष्टिहीन किया था।

जिन रास्तों को हमने
छोड़ दिया था,
वही स्व तक
पहुँचने का सुगम
मार्ग थे।

चुने गए विकल्पों में
जीवंतता का उन्माद न था।
परीक्षा उत्तीर्ण करने की
बाध्यता संग,
उनींदी आँखों से पढ़े गए
वे नीरस अध्याय थे।

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