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अनुदर्शन / महेन्द्र भटनागर

उड़ गये
ज़िन्दगी के बरस रे कई,
राग सूनी
अभावों भरी
ज़िन्दगी के बरस
हाँ, कई उड़ गये !

लौट कर
आयगा अब नहीं
वक़्त
जो —
धूल में, धूप में
खो गया,
स्याह में सो गया !

शोर में
चीखती ही रही ज़िन्दगी,
हर क़दम पर विवश,
कोशिशों में अधिक विवश !

गा न पाया कभी
एक भी गीत मैं हर्ष का,
एक भी गीत मैं दर्द का !

गूँजता रव रहा
मात्र :
संघर्ष....संघर्ष... संघर्ष !
विश्रान्ति के
पथ सभी मुड़ गये !
ज़िन्दगी के बरस,
रे कई
देखते...देखते
उड़ गये !