जब इस तिमिरावृत मंदिर में
उषालोक पर उठे वेश,
तब तुम हे हृदयेश!
इस दीपक की जीवन ज्वाला
कर देना तुरंत नि:शेष;
यही प्रार्थना है सविशेष।
जब यह कार्य्य प्रपूर्ण कर चुके
देह होमने के उपरांत;
स्वयं प्रकाशित हो यह प्रांत;
पूर्ण प्रभा में कर निमग्न तब
कर देना प्रदीप यह शांत;
देर न करना जीवन-कांत?