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अनुवादक / शचीन्द्र आर्य

मैंने भी कुछ किताबों के अनुवाद किए,
जिन पर कहीं मेरा नाम नहीं हैं।
हर बार उनसे मेहनताना लेने के बदले नाम छोड़ता गया।

उस वक़्त उन रुपयों से बिन पैसे वाले दिन टालना
और अपना नाम छोड़ना, कुछ अजीब नहीं लगा।

सोचा,
ठीक है। सब ऐसा करते होंगे।

लेकिन अब, जबकि उन दिनों से बहुत दूर
यहाँ इस जगह बैठा हूँ, लगता है,
उन गलतियों को भी अनुवाद में जगह देते हुए मैंने कुछ ठीक नहीं किया।

अब महसूस होता है,
नाम सिर्फ़ पहचान के लिए ज़रूरी नहीं है
वहाँ रही गयी कमियों, अस्पष्ट वाक्य संरचनाओं, ग़लत नुक्तों,
अशुद्ध कारक चिन्हों के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति का नाम होना ज़रूरी था।