Last modified on 14 फ़रवरी 2018, at 09:01

अन्तिम अनुभव / कविता भट्ट

मृत्यु-शांति ! न जीवन-भय है आज मुझे
आज न बहाओ अश्रु-निर्झर
आज न जलाओ अग्नि-प्रियवर
आज मेरी आत्मा हुई है निर्भय
                                             
आज मुझे मिली मृत्यु- अभय

चिर-परिचित क्रान्ति न क्रन्दन है आज मुझे
हृदय सुलगता साँसें ठंडी
एकांकी मैं सूनी पगडंडी
मृत्यु पर मात्र तुमसे है दूरी
किन्तु जिजीविषा हुई अब पूरी

अब और नहीं कुछ चाहिए
किसी सुख का आभास नहीं
न तुमसे दूर जाने का दु:ख
न तुम्हारे आलिंगन का सुख

मृत्यु- शांति! न जीवन भय है आज मुझे
कामना थी रोने की अपनी मृत्यु पर
थके शिशु-सी सिसक-सिसककर
छलते जीवन की सरिता सुखाकर
कामना सोने की ,ठंडी रेत पर रखसर
स्निग्ध-सौम्य चिरस्थायी प्रेम सी छाँव है आज मुझे

कम्पित-शरीर, सम्भवतः ठंडा शरीर छूकर तुमने
मेरा पीला चेहरा लेकर हाथों में अपने
मेरे ठंडे-कोमल कपोलों पर उष्ण अधर रखे अपने
किन्तु आज देह में नहीं कोई सरसराहट
तेरे न मेरे अधरों पर कहीं नहीं कोई मुस्कुराहट
  
मृत्यु-शांति! है न प्रेम-लोभ है आज मुझे