खेती बारी कजर्द्य न लावै। वैरागी सो भोजन पावै॥
अन्त समय जो काया छाड़ै। नहिँ ले जारे नहि ले गाड़ै॥
करै न कबर महावर कफ्फन। कै जल कै वन करै समर्पन॥
दूध न श्राध न पिंडा काम। धरन धनि वैरागी राम॥
खेती बारी कजर्द्य न लावै। वैरागी सो भोजन पावै॥
अन्त समय जो काया छाड़ै। नहिँ ले जारे नहि ले गाड़ै॥
करै न कबर महावर कफ्फन। कै जल कै वन करै समर्पन॥
दूध न श्राध न पिंडा काम। धरन धनि वैरागी राम॥