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अन्धकारमय जीवन में / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

अन्धकारमय जीवन में
आलोक लिये बढ़ता आता हूँ
राह दिखाने वाला कोई
मिला राह में मुझे अबतक
दुनिया को जो कुछ मिलता है
मिला आह में मुझे न अबतक
अपने लिए अनोखी अपनी
राह मगर गढ़ता आता
मिला दिशा का ज्ञान नहीं, पर
इसके लिए न मन घबराता
चलना है, चलता जाता हूँ,
पथ भी खुद बनता ही जाता
गिरि शृंगों पर नहीं, किन्तु
तलहटियों पर चढ़ता जाता हूँ
भाग्य भरोसे रहा न, इस पर
अब तक है विश्वास जम सका
दुनिया में रहता हूँ, लेकिन
इसमें भी मन नहीं रम सका
पढ़ न सका औरों को, लेकिन
अपने का पढ़ता जाता हूँ
कुछ ने ठोकर दी, तो कुछ ने
अपना प्यार मुझे दे डाला
उर-अन्तर में बड़े यत्न से
मैंने दुख को पोसा-पाला
औरों के सिर दोष न मढ़कर
अपने सिर मढ़ता जाता हूँ
अन्धकारमय जीवन में
आलोक लिये बढ़ता आता हूँ