अपना आना किसने जाना?
जग में आ फिर क्या पछताना?
जो आते वे निश्वय जाते,
तुझको मुझको भी है जाना!
बाँध कमर, ओ साक़ी सुंदर,
उठ, कंपित कर में प्याली धर,
प्रीति सुधा भर, भीति द्विधा हर,
चिर विस्मृति में डूबे अंतर!
अपना आना किसने जाना?
जग में आ फिर क्या पछताना?
जो आते वे निश्वय जाते,
तुझको मुझको भी है जाना!
बाँध कमर, ओ साक़ी सुंदर,
उठ, कंपित कर में प्याली धर,
प्रीति सुधा भर, भीति द्विधा हर,
चिर विस्मृति में डूबे अंतर!