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अपना प्रेमदूत के कब तू हमरा लगे पेठइबऽ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

अपना प्रेमदूत के कब तूं हमरा लगे पेठइबऽ?
नाथ, तबे हमरा मन के सब दुविधा मार भगईबऽ
आउर जे सब लोग दउर के हमरा घर पर आवे
से सब हमरा के धमकावे, शासन खूब चलावे।
लेकिन ई दुरंत मन अइसन, सभका के लौटावे
हार ना माने, घर-दुआर के दउर कपट लगवे।
प्रेम दूत का अइला पर सब रोक-रूकवट छूटी
जतना बंधन बा दुनिया में, सब अपने से टूटी।
तब के राखी, मन के, धर के, घर के भीतर भाई
प्रेमदूत के सुनत बुलाहट, सब कुछ लेके धाई।
प्रेम दूत जब आवेला, आवेला एक अकेले
गरदन में सोभे सुंदर, फलन के माला झूले।
ओही से बान्ही हमरा के, गले लगा रस बोई
हृदय हमार तृप्ति का सुख से मस्त बनी, चुप होई।