Last modified on 19 अक्टूबर 2007, at 02:44

अपना बसेरा छोड़ कर / महेन्द्र भटनागर

अपना बसेरा छोड़ कर
अब हम कहाँ जाएँ?
नहीं कोई कहीं —
अपना समझ
जो राग से / सच्चे हृदय से

मुक्त अपनाए!

देखते ही तन
गले में डाल बाहें झूम जाए,
प्यार की लहरें उठें
जो शीर्ण इस अस्तित्व को
फिर-फिर समूचा चूम जाए!
शेष, हत वीरान यह जीवन
सदा को पा सके निस्तार,
ऐसी युक्ति कोई तो बताए!