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अपनी-अपनी मौत / लालित्य ललित


इच्छाएं
महत्वाकांक्षाएं
आगे बढ़ने की ज़बरदस्त होड़
प्रतिस्पर्धा को
जीतते-जीतते
मुकाम पा कर भी
खाली हैं लोग
मीडिया में धंसे
चैनलों में हंसते लोग
निजी जीवन में
खोखले हैं लोग
डॉलर, येन, नोटों को
ठुंसते लोग
प्रॉपर्टी के घेरे में
रमे लोग
अंतिम मुक़ाम पर
ख़ामोश है लोग
सीधे प्रसारण में
लगे दूसरे लोग
- जी हां ! इस प्रसारण में
आप देख रहे हैं
कई-कई सरकारों के मुख्यमंत्री
अपनी श्रद्धांजलि देने पहुंचे हैं
श्रीमान ‘क’ भी
प्रधानमंत्री कार्यालय से
श्रद्धा पुष्प समर्पित कर रहे हैं
सिने तारिकाओं में
मशहूर हस्तियां भी शामिल हैं
शाम तक
टेलीविजन पर सीधा प्रसारण
ब्रेकिंग-न्यूज़ का पिटारा
अगली सुबह तक
अख़बारों का भी
हाल बेहाल रहा
यानी
बहुधंधी चला गया
जिन्हें इनसे लगाव था
या
कोई मतलब सधा था वरना
आम आदमी को भला
मयस्सर कहां होता क़फन
और ये जनाब तो
चंदन में
प्रस्थान कर गये
ख़ुश्बू ज़रूर छोड़ गये
आख़िर
इच्छा हो तो
क्या कुछ नहीं हो सकता
आम लकड़ी और
चंदन का भेद जानो
तर जाओगे वरना
जाओगे तो यह
सीधा प्रसारण नहीं होगा
ना ही होगा
भारी ताम-झाम पर
इतना ज़रूर होगा
पता नहीं कौन था
बस से उतर रहा था
ब्रेक लगी थी, अचानक
टायर के अगले हिस्से में -
आ गया
पता नहीं, कौन-कौन होगा ?
परिवार में
क्या होगा ? उन का
भाई साहब !
यह बस आगे नहीं जायेगी
आख़िरी बस स्टॉप है
बड़बड़ाता हुआ
मैं उतर गया
अख़बार बस में रह गया
बस डिपो चली गई ।