हम-से हम-ही
बात ज़रा-सी
भले नहीं कुछ पास हमारे ।
कुछ तो करम किए ही होंगे
तब तो हैं पड़तालें जारी ।
जोख़िम लेकर सच कहने की
खेल रहे हैं अपनी पारी ।
जोगीड़ा गाएँ
या कजरी
तार जुड़े हैं स्वर से सारे ।
कोशिश थी मानुष बनने की
कविता तो थी एक बहाना।
कुछ शऊर आए जीने का
ढब टूटे यह ऐंचक-ताना ।
फुन्दनों की तरतीब भरोसे
खिले-अनखिले रँग सँवारे ।
पृष्ठभूमियाँ देखे कोई
सिला न देखे, जो भी पाया ।
उठे सतह से कैसे-कैसे
आग रही अपना सरमाया ।
ज़िल्लत की
सब हदें पार कीं
थे न पहलुओं पर बेचारे ।
हम से हम ही
बात ज़रा-सी
भले नहीं कुछ पास हमारे ।