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अपनी राम मड़ैया / तरुण

बनी रहे यह घास-फूस की अपनी राम मड़ैया,
संतो अपनी राम मड़ैया।
किसका यहाँ अमर पट्टा है, किसकी यहाँ जगीरी?
अमरनाथ की पगडंडी पर कटनी-एक दुपहरी।
उड़ जावेगी कहीं हवा में घास-फूस की टपरी।
थोड़ी देर साथ है भैया, फिर सब चिरी-चिरैया।

पीओ रस के भरे कटोरे सब अपनी सेहत के,
मालपुए खाओ मिसरी के सब अपनी मेहनत के,
करो मुशक्कत, खाओ अपना माखन और मलैया।
बनी रहे यह घास-फूस की अपनी राम मड़ैया!

ठंडी होवे नहीं फकीरो! अपनी चिलम-तमाकूँ,
बड़े-बड़े भवनों से हमको होड़ करन है काकूँ?
टूटी खटिया भली, न काटे कोई बर्र-ततैया।
बनी रहे यह घास-फूस की अपनी राम मड़ैया!

नींद हमारी जो छेड़े, हो नरककुंड का वासी,
मुआ, जनम-सौ चैन न पावे ऐसा सत्यानासी।
राम दुहाई! कान खोल सब सुनें तत्त की, भैया।
बनी रहे यह घास-फूस की अपनी राम मड़ैया!

1972