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अपनी हँसी / रंजना जायसवाल

गंजे की टोपी छीनकर
हँसा वह
अंधे की लाठी छीनकर
लंगड़े को मारकर टँगड़ी हँसा
भूखे की रोटी छीनकर
सीधे को ठगकर
औरत को गरियाकर
हँसता ही गया वह
मैंने गौर से देखा उसे
वह बेहद गरीब था
उसके पास अपनी
हँसी तक नहीं थी