Last modified on 21 अक्टूबर 2010, at 12:54

अपने-अपने मोर्चे डट कर संभालें दोस्तो / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

अपने-अपने मोर्चे डट कर संभालें दोस्तो
इस चमन को हम उजड़ने से बचा लें दोस्तो

गर कोई मतभेद भी है रास्तों के दरमियाँ
कोई साझी राह मिलजुल कर निकालें दोस्तो

कुछ ग़लतफ़हमी में उन को रूठ कर जाने न दें
बढ़ के आगे अपने प्यारों को मना लें दोस्तो

सल्तनत ही डोल जाए जिन के दम से ज़ुल्म की
शब्द ऐसे भी हवाओं में उछालें दोस्तो

बस्तियों को ख़ाक कर दे बर्क इस से पेशतर
बस्तियों पे हम कोई बख़्तर चढा लें दोस्तो

जो अलमबरदारी-ए-अम्नो-अमाँ में मिट गए
गम 'यक़ीन' ऐसे जियालों का भी गा लें दोस्तो