अपने ख़्वाबों को सजाकर
दुनिया की हाट में
जिस दिन सीख जाऊँगी
बोली लगवाना
उसी दिन से मिल जाए
शायद मुझे निजात
पर तब कहाँ बचेगा मेरा घर ?
मैं भी कहाँ बच पाऊँगी शायद...।
अपने ख़्वाबों को सजाकर
दुनिया की हाट में
जिस दिन सीख जाऊँगी
बोली लगवाना
उसी दिन से मिल जाए
शायद मुझे निजात
पर तब कहाँ बचेगा मेरा घर ?
मैं भी कहाँ बच पाऊँगी शायद...।