Last modified on 10 अक्टूबर 2010, at 12:51

अपने घर में / अमरजीत कौंके

अपने घर में बैठ कर
पहली बार मैंने धूप देखी
जो सुबह-सवेरे
उतर कर सीढ़ियाँ
आँगन में उतर आई

धूप को अपने ऊपर ओढ़ते जाना मैंने
कि जीने के लिए
यह चमकती और गुनगुनी धूप
कितनी ज़रूरी थी

अपने घर में उगे फूलों की
दबे पाँव वलती
खुशबू को सूँघते
मैंने पहली बार महसूस किया
कि मुर्दा हो रहे जीवन के लिए
फूलों की यह महक
कितनी लाज़मी थी

अपने घर में मैंने पहली बार
फूलों पर
गुनगुनाती तितली देखी
और सोचा
कि रंगों का मनोविज्ञान
समझने के लिये
प्रकृति की
इस रंगीन कारीगरी को
समझना कितना आवश्यक था

अपने घर में बैठकर
मुझे पहली बार
अहसास हुआ
कि दुनियाँ में
सब बेघरों के लिए
सचमुच
कितने ज़रूरी हैं घर ।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा