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अपने जन्मदिन पर-1 / प्रेमचन्द गांधी

न जाने कितने बीहड़ों को पार कर आया हूँ मैं
जिसे बचपन में मास्टरजी
कप-प्लेट धोने से ज़्यादा योग्य नहीं समझते थे

कितने ही जन्मदिन आए-गए
ख़याल ही नहीं रहा
कुछ तो सिर्फ़ मजूरी करते हुए काटे

आज भी याद नहीं रहता
घर वाले ही याद दिलाते हैं अक़सर
या कुछ सबसे अच्छे दोस्त

इस जन्म-तारीख़ में कुछ भी तो नहीं उल्लेखनीय
सिवा इसके कि इसी दिन जन्मी थीं महादेवी
और मैं भी करता हूं कविताई