बस इतना मै हूँ
एक सामान्य-सा अहं
एक सकुचा-सकुचा-सा
सदभाव
बस इतना मै हूँ
औए चाहता हूँ
बने रहें
मेरे ये नगण्य तत्व
जितने हैं उतने
मेरे भीतर
और छुएं मेरे बाहर
दूसरों को
जगाएं उनमे
अपने-अपनेपन का भाव
जो कम हो अभिमान से
जो नम हो
प्यार से कुछ ज्यादा