Last modified on 28 दिसम्बर 2019, at 23:39

अपने सपने / संजीव वर्मा ‘सलिल’

अपने
सपने कर नीलाम
औरों के कुछ आएँ काम

तजें
अयोध्या अपने हित की
गहें राह चुप सबके हित की
लोक हितों की कैकेयी अनुकूल
न अब हो वाम

लोक-
नीति की रामदुलारी
परित्यक्ता जनमत की मारी
वैश्वीकरण रजक मतिहीन
बने-बिगाड़े काम

जनमत-
बेपेंदी का लोटा
सत्य-समझ का हरदम टोटा
मन न देखता देख रहा है
'सलिल' चमकता चाम...