लौट जाओ वह नरक ही सही तुम्हारा अपना है। जहाँ तुम अपनी पीड़ाओं के अकेले साक्षी हो।
जिस सन्धान में आए थे तुम निष्फल हुआ वह प्रयास उत्तेजित दार्शनिकों की तीक्ष्ण बुद्धि में तुम करूणा के पात्र नहीं हो, विश्लेषण के उपकरण हो तुमसे ही क्रमशः मिलता है उन्हें
विशिष्ट होते जाने का
नम्रछद्मी गर्व।
तुम्हारे
नारकीय जीवन के कारणों का
सजावटी लेखा-जोखा रखकर ही
पोषित होगी
उनकी तर्केषणा।
जो
स्वंय तुमसे
अपने बौद्धिक यंत्रों का
ईंधन तलाशते हैं
उनसे अपनत्व की कामना छोड़
और-लौट जो।
जिस दिन
अपने से ही मिले रास्ता
निकल भागना
वरना
रास्तों का विश्लेषण करती
अभियंताई बुद्धि से
तुम
नीले नक्शों के अलावा
और पा ही क्या सकोगे ?