अपने को पहचानना
अंतर से
अंतरतम तक
अपने से लड़ना है,
ठीक वैसे ही
जैसे आईने में
अपने ही अक्स को देखकर
फड़फड़ाती है चिड़िया
फड़फड़ाते ही फड़फड़ाते
करती है प्रहार,
तब तक
जब तक कि
लहूलुहान
न हो जाए चोंच।
शायद
वैसा ही कुछ
होता है हमारे साथ
कि अपने को
पहचान कर भी
लड़ते हैं हम
अपने होने से।
हाँ,
अपना होना भी
एक संघर्ष है
अंतर से
अंतरतम का,
अतीत से
वर्तमान का।