सभ बुड़िबक
हम बुधियार
जे सोचब
वेअह करब
नीक वा अधलाह
कोनो परवाहि नहि
आ कथीक परवाहि
कथीक कमी हमरा ?
जे संगी ओ हमरे सँ आश धयने...
इएह कारण अछि...
अपन मोनक करैत छथि...
ककरो कना' क'
अपने हँसैत छथि...
अर्वाचीन गप्प थोड़े ई
अदौसँ एहिना होइत आयल अछि...
कतेक ठाम लिखल?
मानस मे सेहो तुलसी कहलनि
सामरथ केँ नहि दोष गोसाईं
पता नहि कोना लोक बुझैछ..?
अहाँ केँ गुणी..?
एकटा लोक नहि चीन्हि सकलहुँ
कतेक बरिस सँ संग छी ...
नीके भेल अधिकारी नहि बनि पयलहुँ..
नहि त' राज्यक सत्यानाश
निश्चिते छल ...
सभ अपने मोनक करैत अछि...
अहूँ करैत छी ..हमहुँ करैत छी...
साधन ओरिआउ
साध्य जगाउ.
टका छिरिआउ
मुदा ! रहत तखन ने?
से त' नहि अछि
तखन डलबाह तकैत छी!
अर्थयुग मे जकरे सामर्थ
ओकरे रहत राज
आ ओकरे अपन बोन
ओकरे अपन सोन
ओकरे अपन जोन
सभ किछु ओकरे
सरिपहुँ ओकरे चलत अपन मोन!!!!!
की मनुक्खताक कोनो मोल नहि?
नहि करब विश्वाश .
गांधी आधा धोती ओढ़ि.
राष्ट्रपिता! महात्मा! बापू!!!
एहि मे सँ एक नाओं
परमविरोधी सुभाष देने छलथि
एक नरम दोसर गरम
तैयो मानवता केँ कयलनि नमन!
यौ मानवमूल्य एकनहुँ जीवैत छैक
एकटा तिरस्कृत कयलनि
ताहि सँ की ???
फेर दोसर दुआरि जायब
सरिपहुँ बुड़िबक छी अहाँ !
गांधी कोनो व्यक्ति
ओ त' विचारक धार
ओ मार्ग थिक!
निःस्वार्थक मार्ग
ओ स्वार्थी थोड़े छलाह
अहाँ जकाँ !!!!!
अहाँ किएक सटल रही
मोन पारू
स्वार्थक लेल ने
यौ स्वार्थ मे वा अनचोके मे
जे कही जे बुझी
ककरो सँ लेल उपकार
संग नहि छोड़ैछ
कर्ण सन दानवीर नहि बचि सकल
अहाँ कोन खेतक मुरै छी??
अंतिम उपाय सुनू
जौं स्वार्थ सँ ऊपर भ' जायब
तखन त' सत्य छी अहाँ
नहि त' एकबेरि आर
साधनशील कीनि लेत
आ फेर बिक' पड़त अहाँ केँ
ब्रह्मों नहि बचा सकैछ
फेर चंदवरदाई जकाँ पक्ष मे
लिख' पड़त...
नहि त' लोभ द' क'
लिखा लेत
नहि लिखब त' एकात क' देत
तखन फेर कहब ...
अपन मोनक करैत छथि ....
नहि यौ लोक जे सोचय..
मुदा ! लिखलहुँ त' ह'म अपने मोने
नीक काज ओ कियो करथि ?
हमर लेखनीक धार
जौं मरत नहि
त' उचित लिखबे करत..
हुनको कएल लिखत
निष्पक्ष! निर्विवाद !!
इएह त' सर्वकालिक रहैछ
इएह अप्पन तरुआरि
कएल काजे संग दैछ !!!
करथु ने ओ " अपन मोनक"
रोकने थोड़े छियनि!!!