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अप्राप्य का सुख / सांत्वना श्रीकांत

मैंने प्रेम होने का इतिहास
दर्ज कर दिया है
तुम्हारे माथे पर,
दंतकथाओं के साक्ष्य भी
कर दिए हैं समर्पित तुम्हें,
तुम्हारे स्वयं में होने के
मायने कर दिए हैं लिपिबद्ध।
अंकित कर दिया है
अपने वर्तमान और

भविष्य में तुम्हें....
ताकि सदियों तक
जीवित रहे-
अप्राप्य का सुख