सिर्फ़ तुम्हारी बदौलत
भर गया था अप्रैल
विराट उजाले से
हो रही थी बरसात
अप्रैल की एक ख़ूबसूरत सुबह में
चाँद के चेहरे पर नहीं थी थकावट
रातों के सिलसिले में
एक इन्द्रधनुष टँग गया था
अप्रैल की शाम में
एक सूखे दरख़्त की फुनगी में
मंदिर की घंटियाँ
गिरजे की कैंडल्स और
मस्जिद की अज़ान
घुल गई थी
अप्रैल की त्रिवेणी में...
सचमुच... सिर्फ़ तुम्हारी ही बदौलत
अचानक उग आए थे
अप्रैल में
इतने सारे फूल
पहली बार अच्छा लग रहा था
बनकर अप्रैल फूल...