Last modified on 24 जुलाई 2024, at 14:32

अफसानागोई / नीना सिन्हा

तुम्हारे चेहरे पर मुलायमियत की जो लकीरें
हैं
वह लोगों को अफसानागोई
दिलजोई
की वजह देती हैं
कि, इक मिसरा ना इधर
ना उधर
ना किसी खाँचे में
ना ढाँचे में
वह हर दर्द में मोम सी पिघलती है
दिशा से अलग
रंज पर उमड़ती है
लोगों की जिंदगियाँ कंधों पर ढोती है

इन लंबी राहों के लोगों से
भीड़ उकता जाती
ना कोई खाईं
ना बवंडर
ना तमाशा
ना गुल ए गुलजार

ये लोग दूर से जान लिए जाते हैं
और
नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुने

भीड़ में चेहरे की लकीरें कहाँ होती हैं!